प्राकृतिक सुषमा से आच्छादित बौद्धनी पहाड़ी, सरकार व स्थानीय प्रशासन की उदासीनता से अपना अस्तित्व खोता जा रहा है।
गया जिला के अति उग्रवाद प्रभावित इमामगंज प्रखंड में प्राकृतिक सुषमा से आच्छादित बौद्धनी पहाड़ी सरकार व स्थानीय प्रशासन की उदासीनता से अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। एक और सरकार द्वारा जहां बौद्ध सर्किट को एक दूसरे से जोड़कर बिहार के पर्यटन स्थल को विश्व के पटल पर लाया जा रहा है वहीं एक महत्वपूर्ण स्थल बौद्धनी पहाड़ी उपेक्षा का शिकार हो रहा है। गया जिले ही नहीं पूरे बिहार में कोई भी पहाड़ी पर से खुदाई में इतना विराट आदम कद बुद्ध प्रतिमा शायद ही कहीं से प्राप्त हुआ होगा। परंतु मानवीय प्रयासों के अभाव में एक महत्वपूर्ण स्थल उपेक्षा का दंश झेलने को मजबूर है। विगत 2003 में स्थानीय ग्रामीणों द्वारा मंदिर निर्माण के लिए किए जा रहे खुदाई में कीमती प्रतिमा के कुछ टुकड़े जिसमें नारी का उभरा हुआ चित्र अंकित है, तथा मगधी शैली में तलाशी हुई पत्थर की चार चौखटे के अवशेष के रूप में मिली है।
वहीं इस पहाड़ी को लेकर क्षेत्र में कई कथाएं प्रचलित है, जिसमें एक किवदंती के अनुसार भगवान बुद्ध अपने उपदेश देने हेतु सारनाथ जाने के क्रम में उक्त बौद्धनी पहाड़ी पर पाँच दिनों का प्रवास किया था। इस प्रवास के दौरान आसपास के कई जगहों पर शांति और सत्य मार्ग पर चलने का उपदेश लोगों के बीच सुनाया, फलस्वरूप इस पहाड़ी का नाम बुद्ध पहाड़ी हो गया। जो कालांतर में बौद्धनी पहाड़ी तथा वर्तमान में धोबी जाति के लोगों द्वारा पहाड़ी के नीचे कपड़े धोने के कारण धोबनी पहाड़ी के नाम विख्यात है। यहां से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित पंचमठ पुरातात्विक स्थानों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। दंत कथाओं के अनुसार इस स्थान पर प्रवास के दौरान भगवान बुद्ध ने अपने पंच वर्गीय भिक्षुओं के साथ उपदेश का वाचन किया था। उन पंच वर्गीय भिक्षुओं ने ही पाँच मठो का निर्माण कराया, फलस्वरुप वह स्थान कालांतर में पंचमठ के नाम से विख्यात हुआ। पंचमठ में भी बुद्ध से जुड़ी कई पुरातात्विक अवशेष हैं, जो कि जहां-तहां बिखरे पड़े हैं। उन अवशेषों के रखरखाव के अभाव में मूर्ति तस्करी करने वाले इसे अपने निशाने पर रखे हुए हैं। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार इस पहाड़ी पर भगवान बुद्ध तथा उनसे जुड़ी कई महत्वपूर्ण पुरातात्विक प्रतिमाएं थी, जो कि कालांतर में मूर्ति भंजकों द्वारा नष्ट कर दिया गया। अंग्रेजी शासन में भी एक विशाल लिपि युक्त बुद्ध के आदमकद प्रतिमा पहाड़ी पर स्थित था। जिसे 30-40 के दशक में यहां से उठाकर ले जाया गया। जो बोधगया या गया स्थित संग्रहालय में आज भी सुरक्षित है, ऐसा बताया जाता है। प्रतिमा को पहचानकर पुनः पहाड़ी पर स्थापित करने की जरूरत है, जिससे कि अति उग्रवाद प्रभावित इमामगंज के सर्वांगीण विकास हो सके। इतना ही नहीं यह क्षेत्र पूर्व से ही धनी प्रतिभाओं का स्थल भी रहा है। एक और जहां महान स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय जगलाल महतो का कर्मभूमि रहा, वहीं सुविख्यात कवि जानकी वल्लभ शास्त्री का जन्मभूमि रहा है। वर्तमान विधायक जीतन राम मांझी पूर्व में जहां बिहार के मुख्यमंत्री रहे तथा पूर्व विधायक श्री उदय नारायण चौधरी विधान बिहार विधानसभा के अध्यक्ष पद पर विराजमान थे, वही भीम सिंह ग्रामीण विकास मंत्री के पद पर रहे हैं। दूसरी तरफ उपेंद्र प्रसाद एवं अनुज कुमार सिंह बिहार विधान परिषद सदस्य बनकर क्षेत्र का गौरव बढ़ाएं हैं।
इमामगंज इतने वर्तमान प्रतिनिधि, महान देशभक्त और सुविख्यात कवि को जन्म देने वाला क्षेत्र होते हुए भी उपेक्षा का शिकार हो रहा है। अब जरूरत है बौद्धनी पहाड़ी को बुद्ध सर्किट से जोड़कर संग्रहालय में रखे बुद्ध प्रतिमा को पुनः स्थापित कर इस क्षेत्र को पर्यटन के मानचित्र पर लाने की। जिससे यह क्षेत्र पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो तथा यहां के निवासियों का सर्वांगीण विकास हो सके।
- सुमन कुमार, इमामगंज ।