इमामगंज प्रखण्ड के ग्राम शमसाबाद में धूम-धाम से व शांतिपूर्वक मनाई गई ईद मिलादुन नबी
- ग़ालिब रज़ा की रिपोर्ट
गया जिला के इमामगंज प्रखण्ड के ग्राम शमसाबाद में बारहवीं शरीफ के मौके पर सैयद दाता ज़मां रहमतुल्लाह अलैह शमसाबाद का उर्स बहुत ही धूम–धाम से जुलुस के साथ-साथ चादर पोशी पेश कर मनाया गया इस जुलूस में कारी व हाफ़िज़ अज़ीज़ुल्लाह खान के साथ-साथ वलीउल्लाह खान , मौलाना वासिक रज़ा , हाफ़िज़ फैज़ुल बारी साहब , हाफिज तारिक खान साहब ने जुलूस में अहम् भूमिका निभाया और गांव के साथ-साथ अपने भारत देश के लिए शांति व अमन व तरक्की के लिए दुआ किया साथ ही हाजी मोहम्मद मोहिबुल्लाह खान के आवास पर सैयद क़ुतुबुद्दीन अशरफ जिलानी किछोछा शरीफ की याद में मिलाद खानी का कार्यक्रम भी आयोजन किया गया साथ ही ग्राम कोठी के अलावा पूरा इमामगंज विधान सभा में ईद मिलादुन नबी शांतिपूर्ण रूप से मनाया गया.बारावफ़ात अथवा ईद-ए-मीलाद या ‘मीलादुन्नबी’क्यों मनाया जाता है साथ-साथ इस्लाम धर्म का प्रमुख त्योहार है। इस अवसर पर पैग़म्बर मुहम्मद का जन्म दिवस को याद किया जाता है और उनका शुक्रिया अदा किया जाता है कि वे तमाम आलम के लिए रहमत बनकर आए थे। ईद-ए-मीलाद यानी ईदों से बड़ी ईद के दिन, तमाम उलेमा और शायर कसीदा-अल-बुरदा शरीफ़ पढ़ते हैं। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक पैग़म्बर मुहम्मद साहब का जन्म रबीउल अव्वल महीने की 12वीं तारीख को हुआ था। हालांकि पैग़म्बर मुहम्मद का जन्मदिन इस्लाम के इतिहास में सबसे अहम दिन है। फिर भी न तो पैग़म्बर साहब ने और न ही उनकी अगली पीढ़ी ने इस दिन को मनाया। दरअसल, वे सादगी पंसद थे। उन्होंने कभी इस बात पर ज़ोर नहीं दिया कि किसी की पैदाइश पर जश्न जैसा माहौल या फिर किसी के इंतक़ाल का मातम मनाया जाए।इतिहासबारावफ़ात को मनाने की शुरुआत मिस्र में 11वीं सदी में हुई। फातिमिद वंश के सुल्तानों ने इसे मनाना शुरू किया। पैग़म्बर के रुख़्सत होने के चार सदियों बाद शियाओं ने इसे त्योहार की शक्ल दी। अरब के सूफ़ी बूसीरी, जो 13वीं सदी में हुए, उन्हीं की नज़्मों को पढ़ा जाता है। इस दिन की फ़ज़ीलत इसलिए और भी बढ़ जाती है, क्योंकि इसी दिन पैग़म्बर साहब रुख़्सत हुए थे।बारावफ़ातभारत के कुछ हिस्सों में इस मौक़े को लोग बारावफ़ात के तौर पर मनाते हैं। अपनी रुख़्सत से पहले पैग़म्बर, बारा यानी बारह दिन बीमार रहे थे। वफात का मतलब है, इंतक़ाल। इसलिए पैग़म्बर साहब के रुख़्सत होने के दिन को बारवफात कहते हैं। उन दिनों उलेमा व मज़हबी दानिश्वर तकरीर व तहरीर के द्वार मुहम्मद साहब के जीवन और उनके आदर्शों पर चलने की सलाह देते हैं। इस दिन उनके पैग़ाम पर चलने का संकल्प लिया जाता है।x