जरूरी और बिना जरूरी सभी दूकाने खोले जाने का उत्साह - भारतीय जनमानस का यह उतावलापन सही है क्या ?
त्रिपाठी, कानपुर देहात (उप्र)
केन्द्र सरकार द्वारा कल देर रात जारी एडवाइजरी " जरूरी और बिना जरूरी ,, सभी दूकाने खोले जाने की जारी होते ही एक तेज प्रक्रिया तथा उत्साह दूकानदार भाईयों में देखा गया। अपने अपने जिले के जिला प्रशासन को अपनी अपनी एडवाइजरी जारी करनी पडी। ऐसा प्रतीत हुआ कि यदि स्थानीय प्रशासन सक्रिय न होता तो आज सारे प्रतिष्ठान खुल गये होते। फिर चाहे कोरोना फैलता या नहीं इसकी चिंता सायद ही किस को होती ।
भारत सरकार एवं प्रदेशों की सरकारों तथा स्थानीय स्तर पर स्वयं सेवी अनेक संगठनों द्वारा जरूरत मंदों की हर संम्भव मदद किये जाने के बावजूद आपदाकाल में जिसे अदृष्य युद्ध की भी संज्ञा दी जा रही है, ऐसी स्थिति में भी जिस तरह अपने प्राणों को संकट में डालकर प्रतिष्ठान मालिक अपने अपने प्रतिष्ठान खोलने को आतुर नजर आते हैं तथा सरकार की सभी सूचनाओं को दरकिनार करके लोग बाजार जाकर खरीदारी करने को आतुर दिखाई देते हैं, इसे समझ कर तथा अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को देख कर आशंका उत्पन्न होती है कि भारतीय जनमानस का यह उतावलापन सही है क्या ?
भारत सरकार व प्रदेश सरकारों के इतने कडे लॉकडाउन के बावजूद हर दिन कहीं न कहीं अनियंत्रित भीड के दर्शन हो ही जाते हैं। कहीं कहीं भीड नियंत्रण करने में सुरक्षाकर्मी भी असहाय दिखाई देते हैं। लेकिन जब सभी प्रतिष्ठान खुल जायेंगे तब क्या स्थिति होगी, यह एक विचार्णीय विषय है , अभी तक देश में जगह जगह बन रहे नये नये हाट स्पाट बनने बंद नहीं हुये हैं न ही नये मरीजों की संख्या में कमी आयी है फिर भी प्रतिष्ठान खोले जाने के आदेश घोषित लॉकडाउन के बीच सरकार ने किस आधार पर और किन परिस्थितियों में जारी किये हैं समझ से परे है, अब यदि सभी जरूरी और गैर जरूरी प्रतिष्ठानों के खुलने पर कोरोना संकृमण बढा और उसके दुष्परिणाम सामने आये तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?